पानी प्राकृतिक रूप से मिलने वाला कुदरत का अनुपम उपहार है जो मनुष्य के लिए ज़िंदा रहने हेतु जरूरी है | लेकिन ये कुदरत का उपहार भी हर जगह बिना समस्या के नहीं मिलता है | कंही पर ये गंदा मिलता है तो कंही पर घुलनशील रसायनों और खनीज लवण की मिलावट के साथ मिलता है |आज कल पानी का व्यापार चारो ओर पैर पसार रहा है | और फ्री का पानी किसी बिरले व्यक्ति को ही मिलता है नहीं तो आपको खरीदना ही पड़ता है |इस पोस्ट के माध्यम से मै आपको बताउंगा कि किस तरह एक फ्री की वस्तु को व्यवसाय का माध्यम बनाया गया है |
आप लोगो को याद होगा कुछ वर्षो पहले फ्लोराईड के बारे में कोइ जानता नहीं था | लेकिन आजकल किसी बच्चे से भी पूछो तो वह तुरंत बता देगा की फ्लोराईड कोलगेट में और जमीन से निकले हुए पानी में मिलता है |फ्लोराईड का प्रचार कंपनिया अपने व्यापार विस्तार हेतु करती है | कोलगेट कंपनी अपने विज्ञापन में कहती है कि फ्लोराईड हमारे दांतों के लिए जरूरी है | जबकि पानी बेचने वाले कहते है की फ्लोराईड युक्त पानी पीने से हड्डिया कमजोर और दांत पीले हो जाते है | घुटनों व जोड़ो का दर्द हो जाता है | इस तरहके भ्रामक प्रचार में मीडिया की अहम भूमिका होती है क्यों की भारतीय जन मानस मीडिया पर आँख मूँद कर विशवास करता है |जब भी कोइ वाटर फ़िल्टर प्लांट लगाता है तो उस एरिया में ये बात ढोल पीट पीट कर कह देता है की इस क्षेत्र के पानी में फ्लोराईड की मात्रा ज्यादा है | इससे जो भी ये पानी पीता है उसके घुटनों में दर्द हो जाता है |घुटनों के दर्द का कारण दूसरा होता है लेकिन जनमानस के दिमाग में ये बात घर कर जाती है की अगर मैंने बोरवेल का पानी पीया तो घुटनों का दर्द हो जाएगा | या पत्थरी हो जायेगी या हड्डिया कमजोर हो जायेगी | इस प्रकार का भय उनके दिलो दिमाग में बैठाने में एक पूरा गिरोह काम करता है जिसमे कुछ डोक्टर ,मीडिया ,पानी विक्रेता और RO फ़िल्टर मशीन बेचने वाले शामिल है |
अब मै आपको एक और बात TDS के बारे में बताता हूँ | फ़िल्टर पानी विक्रेता है वो कहता है की पीने के पानी में 100 से 200 T D S (
Total dissolved solids) होना चाहिए | जबकि WHO यानी विश्व सवास्थ्य संगठन ने अपनी रिपोर्ट में बताया है की 500 T D S तक के पानी को पीने में किसी प्रकार की दिक्कत नहीं है अगर आप पढ़ना चाहते है तो
इस लिंक पर चटका लगा कर पढ़ सकते है | मेरी एक पानी सप्लायर से बात हुयी थी वो घर घर फिल्टर पानी की सप्लाई देता है | उससे मैंने पूछा भाई तुम्हारे पानी में कितना T D S आता है तो उसने तपाक से कहा १५० जब मैंने उससे मीटर मांगा और मैने कहा की मै चेक करना चाहता हूँ तो उसने कहा की उसका मीटर खराब हो गया है इसलिए कल परसों नया मीटर लाएगा तब आप चेक कर लेना | आपकी जानकारी के लिए बता दू की T D S सभी देशो में उस देश की सरकार तय करती है की पानी में कितनी मात्रा होनी चाहिए,भारत सरकार के बारे में मुझे भी मालूमात नहीं है | T D S अगर कम होगा तो पानी बेस्वाद हो जाएगा अगर बहुत ज्यादा होगा तो दांतों का रंग पीला हो जाएगा पाप लाइन में चूने के सामान पदार्थ जम जाएगा प्लास्टिक और धातु के बर्तन में भी चिपका हुआ दिखेगा | RO फ़िल्टर में जो पानी साफ़ किया जाता है वो एक बहुत ही महीन छलनी में छाना जाता है | उस छलनी के छेद T D S की मात्रा के मुताबिक़ महीन व मोटे होते है | जब पानी फ़िल्टर सेक्शन में जाता है तो उस पानी की बहुत कम मात्रा फ़िल्टर होती है और बिना फ़िल्टर हुआ पानी व्यर्थ बह जाता है जितना T D S कम होगा पानी का व्यर्थ बहना और लागत का ज्यादा रहना लाजमी है | इसलिए जहां सप्लायर 150 की कहता है वो मेरे हिसाब से 300 तक हो सकता है | आप अपने नल के पानी को चेक करे हो सकता है वो 400 ही हो | क्यों की कोइ भी पानी का व्यवसाय करने वाला अपने उत्पाद की लागत नहीं बढ़ने देगा |
इस हिसाब से तो उसका T D S हमारे मुंसीपाल्टी के नल के पानी से थोड़ा ही कम मिलेगा | कीटाणु सरकारी पानी में भी नहीं आते है | वो भी क्लोरिन डालते है | अंत में मै आपको ये ही सलाह दूंगा की आप पानी के मामले में दिमाग लगाए और 500-600 T D S तक का पानी बिना किसी हिचकिचाहट के पीये हां स्वाद थोड़ा कम जरूर आयेगा लेकिन सेहत सही रहेगी | और नहीं तो दांतों में कमजोरी आना तय है |
अगर आपको भी इस बारे में कोइ मालूमात हो तो अपनी राय जरूर लिखे |