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Wednesday, January 25, 2012

सिपाही की डायरी से ( अनुवादित अंश )

       मै सोचता हूँ , जब भी मौक़ा मिलता है ,तेरे खयालो में गुम रहना ही अच्छा लगता है | ये आदत पहले नहीं थी ,पता नहीं आजकल क्यों पड़ गयी है | सोचता हूँ ,डोली स्कूल से आ गयी होगी ,उसे अपने प्रोजेक्ट के लिए सामान जुटाने में तुम्हे एक दूकान से दूसरी दूकान तक चक्कर लगाने पड़ रहे होंगे | तुम्हारी कार भी अब बुढी होने लगी है | मैंने तुम्हे बहुत बार समझाया भी था की तुम इसे बदल क़र नयी लेलो ,लेकिन तुम्हे इससे लगाव है क्यों की ये तुम्हे तुम्हारे पापा ने शादी में गिफ्ट दी थी , एक बार मैंने एक एक्सीडेंट में इसकी बोडी पर स्क्रेच लगा दिया था तो तुमने मुझसे बहुत झगडा किया था | उस रात तुमने खाना भी नहीं खाया था ,तुम्हे खुश करने के लिए उस रात मैंने अपने हाथो से तुम्हारे लिए खाना तैयार किया था |
        घर में खडी झाडिया भी अब बड़ी हो गयी होगी , घास भी बहुत बड़ा हो गया होगा , उसे काटना तुम्हारे लिए कैसे मुमकिन होगा , ..................गोलियों की आवाज आ रही है पास के टावर से गार्ड सैनिक गोलिया चलाकर अफगानी बच्चे को डरा रहा है | और वो है की जिद्द करके वापस हमारे कैम्प की तरफ ही आ जाता है | मेरी तरह वो भी जिद्दी है ,मुझे भी जिद्द्द है तेरी यादो में खोये रहने की | सिनेमा की रील की तरह जिन्दगी की रील भी आँखों के सामने चलती रहती है | उसके चक्के बदलते रहते है ,जिन्दगी के भी बहुत से उतार चढ़ाव आते रहते है | यादो की इस रील को समेटने में लगता है बहुत समय चाहिए | समय ही एक मुसीबत है समय किसी के पास नहीं है | लेकिन मेरे पास है बहुत सारा समय है तेरी यादो के बगीचे की सैर को |
मै आज भी उन स्कूल के दिनों को भूल नहीं पाया हूँ जब तुम अपनी सबसे अच्छी सहेली से इसलिए नाराज हो गयी थी क्यों की उसने अपनी नोटबुक में मेरा नाम लिखा हुआ था | बचपन से तुम मुझ पर अपना सर्वाधिकार समझती हो | कितना स्वार्थीपण है तुम्हारा ये मेरे उपर अधिकार ज़माना ................................फिर से एक जोरदार धमाका होता है यादो को ब्रेक लग जाता है लगता है आर्टलरी वालो ने तोप का मुह खोला है | फिर किसी की मांग सूनी होने वाली है फिर किसी बच्ची के सर से बाप साया उठने वाला है | तालीबान तालीबान .....क्या है ये तालीबान क्यों है ये तालीबान ......दिमाग को फिर एक झटका देता हूँ ...क्यों ये पटरी बदल रहा है मै जिन मुद्दों को सोचना नहीं चाहता हूँ वो ही मुद्दे फिर मेरे जेहन में क्यों आ जाते है | मै कोन हूँ कोइ नेता या साहित्यकार हूँ क्या, जो इन सियासी मसलो के बारे में सोचू .....मेरी दुनिया बहुत छोटी है और मै अपनी छोटी दुनिया में मस्त हूँ ,आँखों में नींद आ रही है | बाकी कल लिकूंगा .......

A.BRUKS
3/24/2009

नोट-ये डायरी टेंट की साफ़ सफाई करने के दौरान मुझे मिली थी मूल रूप से अंग्रेजी में है इसका मैंने अनुवाद करने की कोशिस की है ।





5 comments:

  1. बेहतरीन भाव संयोजन...समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है

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  2. बेहतर अनुवाद और जिस याद को उस सिपाही ने संजोया है ....प्रभावपूर्ण है ....!

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  3. युद्ध किसी के लिए अच्‍छे नहीं होते। अच्‍छी डायरी है।

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  4. सिपाही की मनःस्थिति बताती पंक्तियाँ..

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  5. एक सैनिक का दर्द तो सैनिक ही समझ सकता है

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