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Sunday, March 29, 2009

गणगौर पर्व और उसका लोक जीवन में महत्त्व Gangaur festival and their importance in public life

राजस्थान मे बहुत से त्योहार मनाये जाते है लेकिन चैत्र मास त्योहारो का आखरी मास माना जाता है । नवरात्रों के तीसरे दिन यानी की चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की तीज को गणगौर माता याने की माँ पार्वती की पूजा की जाती है | पार्वती के अवतार के रूप में गणगौर माता व भगवान शंकर के अवतार के रूप में ईशर जी की पूजा की जाती है।प्राचीन समय में पार्वती ने शंकर भगवान को पती ( वर) रूप में पाने के लिए व्रत और तपस्या की | शंकर भगवान तपस्या से प्रसन्न हो गए और वरदान माँगने के लिए कहा | पार्वती ने उन्हें वर रूप में पाने की इच्छा जाहिर की | पार्वती की मनोकामना पूरी हुई और उनसे शादी हो गयी । बस उसी दिन से कुंवारी लड़कियां मन इच्छित वर पाने के लिए ईशर और गणगौर की पूजा करती है | सुहागिन स्त्री पती की लम्बी आयु के लिए पूजा करती है |गणगौर की पूजा चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि से आरम्भ की जाती है | | सोलह दिन तक सुबह जल्दी उठ कर बाड़ी बगीचे में जाती है दूब व फूल लेकर आती है | दूब लेकर घर आती है उस दूब से दूध के छींटे मिट्टी की बनी हुई गणगौर माता को देती है | थाली में दही पानी सुपारी और चांदी का छल्ला आदी सामग्री से गणगौर माता की पूजा की जाती है |
आठ वे दिन ईशर जी पत्नी (गणगौर ) के साथ अपनी ससुराल पधारते है | उस दिन सभी लड़कियां कुम्हार के यहाँ जाती है और वहा से मिट्टी की झाँवली ( बरतन) और गणगौर की मूर्ति बनाने के लिए मिट्टी लेकर आती है | उस मिट्टी से ईशर जी ,गणगौर माता, मालन,आदि की छोटी छोटी मूर्तिया बनाती है | जहा पूजा की जाती उस स्थान को गणगौर का पीहर व जहा विसर्जित की जाती है वह स्थान ससुराल माना जाता है |
गणगौर माता की पूरे राजस्थान में पूजा की जाती है | आज यानी की चैत्र मास की तीज सुदी को गणगौर माता को चूरमे का भोग लगाया जाता है | दोपहर बाद गणगौर माता को ससुराल विदा किया जाता है | यानी की विसर्जित किया जाता है | विसर्जन का स्थान गाँव का कुआ ,जोहड़ तालाब होता है | कुछ स्त्री जो शादी शुदा होती है वो अगर इस व्रत की पालना करने से निवर्ती होना चाहती है वो इसका अजूणा करती है (उधापन करती है ) जिसमें सोलह सुहागन स्त्री को समस्त सोलह श्रृंगार की वस्तुएं देकर भोजन करवाती है |
गणगौर माता की पूरे राजस्थान में जगह जगह सवारी निकाली जाती है जिस मे ईशर दास जीव गणगौर माता की आदम कद मूर्तीया होती है | उदयपुर की धींगा गणगौर, बीकानेर की चांद मल डढ्डा की गणगौर ,प्रसिद्ध है |
राजस्थानी में कहावत भी है तीज तींवारा बावड़ी ले डूबी गणगौर | अर्थ है की सावन की तीज से त्योहारों का आगमन शुरू हो जाता है और गणगौर के विसर्जन के साथ ही त्योहारों पर चार महीने का विराम आ जाता है | इस पोस्ट की बाबत जो जानकारी मिली है वो राजस्थानी भाषा के ब्लॉग आपणी भाषा-आपणी बात से मिली है | चित्र गूगल से लिए गए है ( किसी को आपत्ती हो तो बताये हटा दिए जायेंगे |)

Monday, March 23, 2009

बिना किसी साफ्टवेयर के अपना विजिटिंग कार्ड खुद बनाये

जी हां यह सच है | अब विजिटिंग कार्ड बनाने के लिए आपको किसी भी सॉफ्टवेर को डाउनलोड करने की आवश्यकता नहीं है| और ना ही किसी ग्राफिक्स नालेज की जरूरत है| कार्ड बनाना बिलकुल एक दो तीन के सामान है| बस इस वेब साईट पर जाकर अपना नाम एड्ड्रेस फोन न. आदि भरना है| यदि इस पर अपनी कंपनी का मोनोग्राम भी लगाना हो तो उसे बताये स्थान पर अपलोड कर दे| फोंट की बटन दबा कर आप छोटे बड़े कर सकते है| डार्क कर सकते है| बस हो गया आपका विजिटिंग कार्ड तैयार, यहां फाइल को pdf फॉर्मेट में सेव करने का आप्शन भी मिलता है | इसे आप लैटर साइज़ के मोटे कागज़ पर प्रिंट कर ले | मुझे भी इसे मजबूरी में खोजना पडा क्यों की नेट पर कोई भी फ्री सॉफ्टवेर नहीं मिल रहा था| जो भी सॉफ्टवेर मिलता था वो ट्रायल वर्जन में ही मिलता था, जो की सेव करने या प्रिंट निकालने पर अपना ट्रायल वर्जन का लोगो शो करता था| फिर गूगल बाबा की मेहर बानी से इस वेब साइट का पता चला | आप भी इस को एक बार काम में लेकर देखे |

Thursday, March 19, 2009

राजस्थान कि ओर्गेनिक सब्जी

राजस्थान के मरूस्थलीय भागों मे एक वनस्पति पायी जाती है जिसे यहाँ स्थानीय भाषा मे खींप कहते है । इसके मार्च के महीने मे फ़ली लगती है |जिसकी सब्जी बनायी जाती है । अब आप यह कहेंगे कि इसमें अनोखी बात क्या है । सब्जी तो सभी जगह बोई जाती है सभी जगह पैदा होती है इस पोस्ट का लिखने का क्या मतलब है । वर्तमान मे जो सब्जियां तैयार हो रही है उनके बीज हाई ब्रीड होते है यानि कि शंकर होते है । जिससे पैदावार तो ज्यादा होती है लेकिन गुणवत्ता कम हो जाती है । स्वाद भी बहुत बढ़िया नही होता है। किसान ज्यादा पैदावार लेने के चक्कर मे उस पर ज्यादा रसायनिक खादों व कीट कीटनाशकों का उपयोग करता है । परिणाम स्वरूप उसका स्वाद व गुणवत्ता खत्म हो जाती है । राजस्थान के शेखावाटी प्रदेश मे भी सब्जियां बहुतायत मे बोई जाती है । आजकल केवल कुछ ही सब्जियां है जिनमें प्राकृतिक स्वाद निहित है । जैसे कैर.ककोड़ा,सांगर(खेजडी की फ़ली),फ़ोगला (रायता बनाने के काम मे लेते है )खींपोळी (खींप की फली )आदि । अन्य सभी सब्जियों मे ज्यादा या कम मात्रा मे रसायनों का प्रयोग होता ही है । मुझे खेत की तरफ़ गये हुये काफ़ी दिन हो गये थे समय अभाव कि वजह से नही जा पाया। कल जाने का वक्त मिला चित्र मे जो हरे रंग के तार से दिखते है इसे ही खींप कहते है। इसकी फली बहुत गुण दायक होती है । आयुर्वेद मे शरीर मे कुछ विकारो के बारे मे बताया गया है जिसमें एक वायु विकार भी है । वायु विकार कि वजह से शरीर मे दर्द रहने लग जाता है । वायु विकार को दूर करने मे कैर व खींपोळी बहुत ही सहायक है । कहने का मतलब यह है कि आम के आम और गुठलियों के दाम ।

खींपोळी
की सब्जी बनाने में खटायी देने के लिये छाछ का प्रयोग किया जाता है । रस्से को गाढा करने के लिये बेसन का उपयोग किया जाता है । सबसे पहले फ़ली को धोकर काट ले तथा उबाल ले । दबा कर उसका पानी निकाल ले तथा दूसरे बर्तन मे तेल मे सब्जी का मशाल पका उसमें उबली हुयी फ़ली डाल कर चलाये । एक कप मे थोड़ा सा बेसन व छाछ की पेस्ट बनाकर वह भी इसमें डाल दे । व चम्मच से चला कर चूल्हे से उतार ले आपकी सब्जी तैयार है

“खींपोळी ए म्हारी खींपा छायी तारां छायी रात---------गणगौर के गीतो मे भी इसका बखान किया जाता है । राजस्थान की माटी से जुड़े हुये लोग इसके स्वाद को बहुत अच्छी तरह जानते है । अगर हो सके तो मित्रों आप एक बार इस सब्जी को चख कर जरूर बताये ।

Saturday, March 7, 2009

शेखावाटी कि पहली हिन्दी वेब साइट

माई झुन्झुनुं डॉट कोम नाम कि यह वेब साइट जिले कि पहली हिन्दी वेब साइट है यह साइट गैर व्यापारिक उद्देश्यों के लिये निर्मित कि गयी है । इसका सम्पूर्ण श्रेय श्री डी.एन.तुलस्यान जी को है । यह साइट अपने आप मे सम्पूर्णता लिये हुये है । यह झुन्झुनूं के ऐतिहासिक, सामाजिक, आर्थिक एवं प्रशासनिक जानकारियों का बोध कराती है । इसके मेनूबार मे तीन लिंक दिये है पहला व्यक्तित्व के बारे मे है जिसमे झुन्झुनूं जिले के विशिष्ट व्यक्तित्व वाले लोगो के बारे मे जानकारी दी गयी है दूसरा लिंक वास्तु का है जिसमें पुरानी वास्तु कला के बारे मे बताया गया है । तीसरा लिंक रीतिरीवाज का है जिसके चार भाग है विवाह सामग्री,लोक रंग, नीति वचन और प्रमुख त्योहार आदि चार भाग बनाये गये है ।
जिले के सभी सरकारी व गैर सरकारी संस्थानों के बारे मे जानकारी दी गयी है । इसमे आप जिले भर के प्रमुख समाचार,व ताजा घटना क्रम को पढ़ सकते है । शेखावाटी को नजदीक से जानने का एक यही जरिया है इस वेब साइट को शेखावाटी का दर्पण कहा जाये तो कोइ अतिशयोक्ति नही होगी यानी गागर में सागर है ।
तो देर ना करे एक नजर जरूर मारे । अरे हा खूबिया गिनाते गिनाते मै आपको इसकि कुछ त्रुटिया बताना तो भूल ही गया । पहली गलती तो यह है कि इस वेब पेज के फ़ोन्ट आपको डाउन लोड करने पडेगे क्यों कि जब यह साइट बनायी गयी थी तब शायद एक्स पी के डिफ़ोल्ट हिन्दी यूनीकोड फ़ोन्ट का चलन नही रहा होगा । दूसरी कमि यह है कि अब जो परिवर्तन किये गये है वह भी पी डी एफ़ फ़ाइल मे किये होने कि वजह से वही लोग देख सकते है जिनके पास एक्रोबेट रीडर या फ़ोक्सिट रीडर हो । वैसे इस ओर मैने साइट के स्वामी को अवगत करा दिया है जिससे निकट भविष्य मे सुधार दिया जायेगा ।

Tuesday, March 3, 2009

शेखावाटी पर्यटन की नजर से

शेखावाटी राजस्थान के उत्तर पश्चिम भाग में पड़ता है। । शेखावाटी राजस्थान के सीकर,झुँन्झुँनु, और चूरु जिलों को मिलाकर बना है।यहां आपको विविध रंग देखने को मिलते है । यहां पहाड़ी क्षेत्र(सीकर जिले का अधिकतर भाग), मरुस्थलीय भाग (चूरू जिला) मैदानी भाग ( झुँन्झुँनु जिला ) तीनों ही मिल जाते है ।


शेखावाटी अपनी कला व संस्कृति के लिए प्रसिद्घ है। सत्रवी अठारहवीं सदी से ही महाजन लोग मुंबई , कलकत्ता, मद्रास,सुरत जैसे शहरों में चले गये । इन्होने यहां पर बडी और सुन्दर हवेलिया बनाई। शेखावाटी अपने भित्ती चित्रों के लिए पूरी दुनिया में जाना जाता है। देशी और विदेशी सैलानी बडी संख्या में यहां घूमने आते है। शेखावाटी के रामगढ , फतेहपुर, मंडावा, महनसर, बिसाऊ,नवलगढ,डूण्डलोद,मुकन्दगढ जैसे कस्बे पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र हैं। इन कस्बों की गलियों मे देशी विदेशी सैलानीयो को घूमते हुये देखा जा सकता है । शेखावाटी को खुली कला दीर्घी भी कहा जाता है । क्यों कि यहां कि चित्रकला को देखने के लिये आपको किसी प्रकार कि परेशानी नही उठानी नही पडती है आप बडे आराम से गलीयों मे घूमते हुये हवेलियों के भीत्ति चित्रो को देख सकते है ।
प्रमुख जगहों मे महनसर में सेजराम पोद्दार की हवेली की सोने-चांदी की दुकान, पोद्दारों की छतरियां और यंहा का गढ भव्य इमारतें हैं। महनसर कि महारानी(शराब) तो यहा बहुत ही प्रसिध्द है ।डूण्डलोद का गढ जिसे आजकल हैरिटेज होटल बना रखा है । गोयनका हवेली खुर्रेदार हवेली के नाम से प्रसिद्ध है। इस हवेली का निर्माण सेठ अर्जुन दास गोयनका द्वारा करवाया गया था । इस विशालकाय चौक की हवेली के बाहर दो बैठकें, आकर्षक द्वार और भीतर सोलह कक्षों का निर्माण किया हुआ है । जिनके भीतर कोटडियों, दुछत्तियों, खूटियों, कडियों की पर्याप्त व्यवस्था रखी गई है । इसे आजकल संग्रहालय बना दिया गया है । इस घुमावदार खुर्रे की हवेली का भीतरी हिस्सा लोक चित्रों से भरा पूरा है |जिनमें श्रीकृष्णकालीन लीलाओं के चित्र प्रमुख है। मन्डावा का कासल होटल, सागरमल लादिया की हवेली, रामदेव चौखानी की हवेली मोहनलाल नेवटिया की हवेली भी दर्शनीय है।झुन्झुनु में राणी सती का मन्दिर,टीबडे वालों की हवेली और ईसरदास मोदी की सैकडों खिडकियों वाली भव्य हवेली हैं । रामगढ शेखावाटी में राम गोपाल पोद्दार की छतरी में राम कथा चित्रांकित है, घनश्याम दास पोद्दार की हवेली आकर्षक और कलात्मक है तो ताराचंद रूइया और रामनारायण खेमका हवेली आदि प्रमुख पर्यटन स्थल है । चूरू में भी मालजी का कमरा, सुराणों का हवामहल, रामविलास गोयनका की हवेली, मंत्रियों की बडी हवेली और कन्हैयालाल बागला की हवेली दर्शनीय है। जंहा जंहा इन गढो व हवेलियो को व्यवसायिक रूप मे इस्तेमाल होता है वहा वहा तो यह सुरक्षित है । लेकिन जहां यह किसी कि निजी सम्पती के तोर पर या लवारिस पडी है वंहा ये रख रखाव के अभाव मे जर्जर हालात मे है । क्यों कि इन हवेलियों के मालिक बाहर ही रहते हैं। उन्हे इनकी सुध लेने का समय ही नही है । पर्यटन को इस तरफ बढा कर इन को खत्म होने से बचाया जा सकता है।





















यदि
आप को विज्ञान विषय मे रूची है तो आप पिलानी भी घूम सकते है । यहा का बिरला म्युजियम तो लाजवाब है । पिलानी कि दूरी झुँन्झुँनु से ५५ किमी है। पिलानी मे दूसरी जगहों मे पंचवटी भी अच्छी जगह है । इसमे
रामायण के कुछ पात्रों का मूर्ती के रूप मे सजीव चित्रण किया गया है । इन्हे आप चित्रों मे भी देख सकते है( चित्र १.३ मेगा पिक्सल मोबाइल कैमरे से लिये होने के कारण कुछ धुधंले है)
झुँन्झुँनु दिल्ली से करीब २५० किलोमीटर व जयपुर से ये २०० किलोमीटर की दूरी पर है। आप यहां रेल व सडक दोनो ही मार्गों से पहूंच सकते है। यदि आप ज्यादा खर्चा कर सकते है तो आप हेरीटेज होट्लो मे रूक सकते है । लेकिन यदि आप सस्ते मे यकिन रखते है तो बस स्टैण्ड के पास ही काफ़ी सारे सस्ते होटल व लोज बने हुये है जहां आप रूक सकते है ।

शेखावाटी मे पर्यटन के विषय मे आपको यदि कुछ पूछ्ना हो तो आप मुझे टिप्पणी मे या मेल करके भी पूछ सकते है ।

(चित्र गुगल से लिये गये हैं किसी को कोइ आपत्ती हो तो हटा दिये जायेंगे ।)

Sunday, March 1, 2009

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