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Saturday, November 22, 2008

हिन्दी जगत के नये ब्लोगर और उनकी गलतीयां

मै हिन्दी चिठ्ठाजगत में नया था । आज भी नया हूं ओर नया ही रहना चाहता भी हूं। जो नया है वही सीखना चाहता है पुराने तो केवल सिखाते है । मै आपको सिखाउगां नही । मै बताउगां की मेरे नजरिये से आप क्या गलती करते है । मै जब भी किसी चिठ्ठे पर पढता हूं ओर जो विचार उस वक्त मेरे मन में आते है वही आपके साथ बांटना चाहता हूं।

१- पाठक उन चिठ्ठों पर कम जाना पसन्द करता है , जिनका लोडींग समय बहूत ज्यादा है । साज सज्जा के चक्कर में चिठठाकार भूल जाते है कि सब पाठको के पास ब्रोडबैण्ड नही है।

२-आपका चिठ्ठा आपने बनाया है उसका मकसद क्या है । अगर आप केवल पाठक चाह्ते है तो आप को अपने चिठ्ठे व उसकी प्रविष्टी का हेडीगं कुछ रोचक देना पडेगा । यानी की खोदा पहाड ओर निकले पत्थर ,चुहिया नही वरना असर उलटा भी हो सकता है । लेकिन दूसरी तरफ़ यदि आप यह चाहते है पुराने लिक्खाडो जैसी टिप्पणीयां मिले तो उसके लिये कुछ त्याग करना पडेगा ।मै जिस चीज को त्याग कहता हू । शास्त्री जी उसे निवेश की संज्ञा देते है पूरी जानकारी के लिये उनकी यह पोस्ट पढ सकते है ।

३- आप को कुछ भी नहीं आता ओर फ़िर भी आप प्रसिद्ध होना चाहते है तो एक बहूत ही सुपर हिट फार्मूला है जो कि आजकल फ़िल्म जगत,राजनीति, कोर्पोरेट आदि मे चलन में है। यानी कि किसी प्रसिद्ध चिठठाकार के खिलाफ मोर्चा खोल दें। मै जानता हूं कि यह गलत है लेकिन भाई साहब आप को बिना कुछ किये प्रसिद्धी तो मिल ही जायेगी ।

३- काफी चिठ्ठों मे word verification कर वाया जाता है । उसके चलते पाठक उस पर टिप्पणी असानी से नही कर पाता है ।

४- कुछ चिठठाकार एक गलती ओर भी करते है,वो है टिप्पणी मोडरेशन की । इसके कारण आप पाठक के दिल मे नही उतर पाते आप पाठक के प्रती शंका रखते है ओर आलोचनात्मक टिप्पणीयो को पसन्द नही करते । यही गलती पहले मै भी करता था ।

५-कभी भी रेक के चक्कर मे नही पडे पाठक आपकी रेंक को नही आप की विषयवस्तु को देखकर ही आता है । चिठाजगत का उसूल है कम लिखो, अचछा लिखो,ज्यादा पढो,ज्यादा टिप्पणीयां दो बाकी भगवान भरोसे छोड दो कुछ बाकि रह गया हो तो यंहा पढ़े

Wednesday, November 19, 2008

कंप्युटर के लिये कुछ देशी जुगाड - भाग १

आप सभी ने किसी न किसी जुगाड के बारे में तो जरूर सुना ही होगा। जुगाड शब्द का अर्थ सामान्य भाषा में जोड तोड कर के काम मे लेने योग्य बनाना है । एक जुगाड हरीयाणा मे काफ़ी मशहूर हुआ था । साधारण इंजन को ट्रेक्टर के रूप मे काम मे लेने का जिसमे सामान व सवारीयां ढोई जाती थी । इसका नामकरण कुछ लोगों ने 'मारूता' कर दिया कुछ ने केवल उसे जुगाड ही कहा लेकिन मै जो जुगाड आपको बता रहा हू वह कंप्युटर से संबन्धित है।
आप कंप्युटर का उपयोग गीत संगीत के लिये तो जरूर करते है । कइ बार आप के पास कंप्युटर के स्पीकर नही होने की वजह से आप गीत संगीत का मजा नही ले पाते है।आप नजर दोडायेगें तो आपको घर मे ही जुगाड मिल जायेगा । सबसे आसानी से उपलब्ध होने वाले समान मे tv कैसा रहेगा? जी हां आप tv को कंप्युटर से जोड सकते है इसके लिये विशेष कलाकारी की जरूरत नही है ।
आप को एक केबल की जरूरत पडेगी जो आसानी से बाजार मे मिल जाती है इसे sterio jack to rca केबल कहा जाता है । जिसका चित्र नीचे दिखाया गया है
एक साइड कोकंप्युटर के स्पीकर वाले सोकिट मे लगाये व दूसरे rca के सिरो को tv के av in के audio left व audio right मे कलर कोड के हिसाब से लगाए
tv के रिमोट पर एक बटन होती है जिस पर tv/av लिखा रह्ता है। इस बटन को दबा कर av मोड चालू करे । tv मे आवाज के काफ़ी सारे फ़ंक्सन होते है अपनी पसन्दके हिसाब से सेट करे





tv के रिमोट पर एक बटन होती है जिस पर tv/av लिखा रह्ता है। इस बटन को दबा कर av मोड चालू करे । tv मे आवाज के काफ़ी सारे फ़ंक्सन होते है अपनी पसन्दके हिसाब से सेट करे आगे के जुगाड़ अगली पोस्ट में

Monday, November 17, 2008

कंहा गए गिद्धराज

भारत में पर्यावरण को बचाए रखने में गिद्धों की महत्वपूर्ण भूमिका है । गिद्धों का साफ़-सफ़ाई में बहुत महत्वपूर्ण योगदान है। 90 के दशक के शुरुआत में भारत में करोड़ों की संख्या में गिद्ध थे,लेकिन अब इनके दर्शन केवल तस्वीरों में ही होते है। वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि अगले कुछ सालों में एशियाई गिद्ध विलुप्त हो सकते हैं। इसके लिए जानवरों को दी जाने वाली एक दवा को दोषी ठहराया गया है। इस दवा का नाम है diclofenac (डाइक्लोफ़ेनाक)। जी हां ठीक समझे ताऊ की हरी पन्नी वाली गोली । जिसका परचार टीवी पर खूब आता है। यह पशुओं को दर्दनाशक के रुप मे दी जाती है इस दवाई को खाने के बाद यदि किसी पशु की मौत हो जाती है तो उसका मांस खाने से गिद्द मर जाते हैं। सर्वेक्षणों में मरे हुए गिद्धों के शरीर में डायक्लोफ़ेनाक के अवशेष मिले हैं। हालांकि भारत सरकार शुरुआत में कुछ हिचक रही थी लेकिन बाद में वह मान गई कि इस दवाई के कारण ही गिद्धों की मौत हो रही है।
भारत सरकार ने इसे वर्ष 2006 में प्रतिबंधित भी कर दिया। इस प्रतिबंध का कोई ख़ास असर नहीं हुआ। इसके दो कारण थे एक तो भोजन चक्र से इसका असर ख़त्म होने में काफ़ी वक़्त लगेगा दूसरा यह केवल पशुओं की दवा के रूप में बन्द हुइ थी मानवीय दवा में अभी भी बिक्री में है जिसका उपयोग हमारे पशुचिकित्सक मजे से कर रहे है। भारत सरकार से संबद्ध नेशनल बोर्ड फॉर वाइल्डलाइफ़ ने भी डायक्लोफ़ेनाक पर प्रतिबंध लगाने की सिफ़ारिस की थी। बाद में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने इसे स्वीकार कर लिया और डायक्लोफ़ेनाक की जगह दूसरी दवाइयों के उपयोग को मंज़ूरी दे दी। लेकिन डाइक्लोफ़ेनाक की जगह जिस मेलोक्सिकैम नाम की दवा के उपयोग की सलाह दी थी वह डाइक्लोफ़ेनाक की तुलना में दोगुनी महंगी है इसलिए इसका उपयोग नहीं हो रहा है। वैसे तो गिद्ध भारतीय समाज में एक उपेक्षित सा पक्षी है लेकिन सफ़ाई में इसका सामाजिक योगदान बहुत महत्वपूर्ण है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि गिद्धों के विलुप्त होने की रफ़्तार यही रही तो एक दिन ये सफ़ाई सहायक भी नहीं रहेंगे।
वैज्ञानिकों का कहना है कि गिद्धों को न केवल एक प्रजाति की तरह बचाया जाना ज़रुरी है बल्कि यह पर्यावरणीय संतुलन के लिए भी ज़रुरी है। वे चेतावनी देते रहे हैं कि गिद्ध नहीं रहे तो आवारा कुत्तों से लेकर कई जानवरों तक मरने के बाद पड़े सड़ते रहेंगे और उनकी सफ़ाई करने वाला कोई नहीं होगा और इससे संक्रामक रोगों का ख़तरा बढ़ेगा ।
इस जानकारी को आप तक पहूंचाने की प्रेरणा मुझे ताऊ रामपुरीया की इस पोस्ट से मिली है जिसमे उन्होनें कम होते पक्षीयों के बारे में चर्चा की है

Saturday, November 15, 2008

3000 रु में नेट पीसी दिलाएगी BSNL


भारत संचार निगम लिमिटेड (BSNL) अपने कस्टमर्स के लिए 3000 रुपए से भी कम में ब्रॉडबैंड कनेक्शन वाला कंप्यूटर देगा। BSNL ने इसके लिए आईटी प्रोडक्ट्स कंपनी नोवार्टियम सॉल्यूशंस से समझौता किया है। इस समझौते की वजह से कस्टमर्स को सस्ती कीमत पर नोवा नेट पीसी मिल पाएगा।
कस्टमर्स को नेट पीसी सिर्फ 2,999 रुपए में मिलेगा,इससे देश में ब्रॉडबैंड कनेक्शन बढ़ेंगे और ज्यादा लोगों तक कंप्यूटर और इंटरनेट की पहुंच होगी।
नोवा नेट पीसी एक सस्ता और उपयोगी डेस्कटॉप है। इसे घर में इस्तेमाल के लिए बेहद यूजर फ्रैंडली बनाया गया है। नेट पीसी की खास बात ये होती है कि इसमें पीसी तो आपके घर में होता है लेकिन कंप्यूटर का स्टोरेज और सॉफ्टवेयर किसी और जगह रखे सर्वर में होता है। इसमें आप अपनी पसंद के सॉफ्टवेयर की डिमांड भी कर सकते हैं। ज्यादा जानकारी के लिये यहा चटका लगायें ।

Friday, November 14, 2008

परीचय एक विशिष्ट व्यक्तित्व का

शेखावाटी में परोपकारी लोगों की कमीं नही है। लेकिन कुछ लोग अपने व्यक्तित्व से उस सीमा तक पहूंच जाते है कि आने वाली पीढियां उन्हे भुला नही पाती । एसे ही एक परोपकारी,विशिष्ट व्यक्तित्व के धनी थे वैधश्री मोहन लाल जी कानोडिया। मोहन लाल जी सूरजगढ के रहने वाले थे । सूरजगढ,झुन्झुनूं जिले का कस्बा है शेठ लोगों का गांव है। जयपुर से लूहारू जो रेल्वे लाइन है उस पर लूहारू से पहले आता है सूरजगढ, यहा पर अनाज की मन्डी भी है । मोहन लाल जी से मेरा ज्यादा मिलना नही हुवा । लेकिन दो तीन बार की भेंट में ही वे अपने कार्य व व्यक्तित्व की छाप मुझ पर छोड गये । सूरजगढ मे बुहाना चोक के पास उनकी हवेली है । पहली बार मै उनसे मिलने एक रिश्तेदार की दवा दारू के लिये गया था। 9य10 बजे का वक्त रहा होगा जब मैं उनके घर पर पहूचा । काफ़ी मरीज वहां पर बैठे थे । सफ़ेद बनीयान व सफ़ेद धोती बान्धे एक बुजुर्ग बारामदे में उनको आयुर्वेदिक दवाइया दे रहे थे। हमारा नम्बर आया तो हमसे हमारा परीचय किया फ़िर रोग के बारे में पूछा और दवाइयां दी। जब फ़ीसके बारे में पूछा तो मुस्करा के बोले मेरी फ़ीस ज्यादा नही लेकिन कठिन है। आप पहले ठीक हो जाओ, बाद मे ले लेंगे। एक हफ़्ते बाद जब हम दुबारा उनसे मिले तो काफ़ी खुल से गये थे। अपनापनसा लगने लग गया था । देखते ही हमारा नाम लेकर पूछा कैसे हो ? उनकी याददाश्त देख कर मुझे बहूत ही आश्चर्य हुआ । रोजाना उनके पास कम से कम सो मरीज तो आते ही होगें इस हिसाब से सात दिनो मे सात सो हुए उनमें हमारा नाम याद कैसे रख लिया। वो सभी मरीजों व उनके परीजनों को नाम से ही पूकारते थे । यह एक छोटा सा उदाहरण है उनकी याददाश्त का । अबकी बार हम लोग थोडी देरी से गये थे । इसलिये वो थोडे फ़्री लग रहे थे सो मैनें उनसे काफ़ी जानकारी लेली । वो जो दवा लोगॊं को देते थे वो जंगल व खेत खलीहानों से इकठ्ठी करवाते है । अन्य मरीजों को व परीजनों को जिसकी जैसी हैसियत वैसा ही कार्य सोंपते है। जैसे दर्जी को कपडे के बची हुइ कतरने लाने के लिये बोलते थे ताकी उनसे मलहम की पट्टीयां बनाई जा सके। मजबूत शरीर वाले को ओषधीयां कूट्ने पीसने का काम देते थे।उनकी कार्यावधी ८ से १२ बजे तक रहती थी । इस समय दोरान वे मरीजों मे भेदभाव नहीं करते थे। मरीज चाहे किसी भी क्षेत्र,जाती,लिंग,समाज या धर्म का हो उनके लिये मरीज ही होता था। ऐसे निस्वार्थ भाव से सेवा करने वाले इस युग मे बहूत कम ही होते है। इस महान आत्मा का कुछ वर्ष पूर्व निधन हो गया है। वर्तमान में उनके पुत्र श्री महेश जी कनोडीया उनके ही पदचिन्हों पर चल रहे है। हालान्की मेरी तो अभी तक महेश जी से मुलाकात नही हुइ है लेकिन जैसा की लोगों ने बताया है वे भी बहुत ही परोपकारी हैं।

Sunday, November 9, 2008

हिन्दी ब्लोग और तकनीक

अगर आप तकनीकी रूप से कमजोर है तो आपको कुछ तकनीकी ब्लोगों की खोज करनी पडती है जिसमें जाकिर अली’रजनीश’ जी यह पोस्ट बहुत ही लाभदायक हो सकती है, जिसमें उन्होने लगभग हिन्दी के सभी तकनीकी ब्लोगों की जानकारी लिंक के साथ दी है।
http://tasliim.blogspot.com/2008/09/blog-post_23.html

Friday, November 7, 2008

कंप्यूटर समस्या समाधान व नई तकनीक: वेब कैम एक सुरक्षा युक्ति के रूप मे

कंप्यूटर समस्या समाधान व नई तकनीक: वेब कैम एक सुरक्षा युक्ति के रूप मे यह पोस्ट मेरी लिखी हुइ नही है मैंने तो लिंक ही दिया है इसके लिये अभिषेक आनन्द जी को धन्यवाद दें।